माँ और बेटे की कहानी. ( Mother and a Teenage Child)
- Dev Rai
- May 16
- 3 min read
एक छोटे से गाँव में राधा नाम की एक माँ और उसका टीनएज बेटा राहुल रहता था। राहुल बड़ा हो रहा था और हमेशा अपनी मनमानी करता। वह माँ की बात नहीं सुनता, स्कूल में ध्यान नहीं देता, और दोस्तों के साथ देर रात तक बाहर रहता। राधा बहुत परेशान थी। वह सोचती, "मेरा बेटा मुझसे दूर क्यों जा रहा है? मैं उसे सही रास्ता कैसे दिखाऊँ?"

एक दिन, राधा ने ठान लिया कि वह राहुल को डाँटने या कंट्रोल करने की बजाय उसका दोस्त बनेगी। उसने एक नया तरीका आजमाया। रात को जब राहुल घर आया, राधा ने गुस्सा होने की बजाय मुस्कुराते हुए कहा, "बेटा, आज तुमने साथ क्या मज़े किए? कोई मज़ेदार बात बता!" राहुल हैरान हुआ, क्योंकि उसे डाँट की उम्मीद थी। उसने थोड़ा हिचकते हुए अपनी मस्ती की बातें बताईं। राधा ने ध्यान से सुना और हँसते हुए कहा, "वाह, तुम्हारे दोस्त तो बड़े मज़ेदार हैं!"
अगले दिन, राधा ने राहुल से कहा, "बेटा, मैं बाज़ार जा रही हूँ। तुम्हें कुछ चाहिए? या चलो, साथ चलते हैं, रास्ते में गोलगप्पे खाएँगे!" राहुल को यह सुनकर अच्छा लगा, और वह माँ के साथ चला गया। रास्ते में दोनों ने खूब बातें कीं। राधा ने राहुल की पसंद-नापसंद को समझा और उसकी बातों को बिना जज किए सुना।
धीरे-धीरे, राहुल ने माँ से अपनी दिल की बातें साझा करनी शुरू कीं। एक दिन, उसने बताया कि वह पढ़ाई में कमज़ोर होने की वजह से परेशान है। राधा ने गुस्सा होने की बजाय कहा, "कोई बात नहीं, बेटा। हर इंसान को हर चीज़ में परफेक्ट होने की ज़रूरत नहीं। लेकिन अगर तुम चाहो, तो हम मिलकर पढ़ाई का एक मज़ेदार तरीका ढूंढ सकते हैं।" राधा ने राहुल को पढ़ाई के लिए मजबूर नहीं किया, बल्कि उसे छोटे-छोटे लक्ष्य दिए, जैसे "आज सिर्फ 20 मिनट पढ़ लो, फिर हम तुम्हारा पसंदीदा गाना सुनेंगे!"

राधा ने एक और चीज़ सीखी। जब भी वह गलती से राहुल पर चिल्ला देती, वह बाद में माफी मांगती। "बेटा, मुझे गुस्सा नहीं करना चाहिए था। मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ।" राहुल को यह देखकर हैरानी हुई कि उसकी माँ भी इंसान है और गलतियाँ कर सकती है। इससे उसका माँ के प्रति सम्मान बढ़ा।
राधा ने राहुल को ज़िम्मेदार बनाना शुरू किया। एक दिन, उसने कहा, "राहुल, तुम अब बड़े हो गए हो। घर का राशन लाने में मेरी मदद करोगे?" राहुल ने पहली बार राशन की लिस्ट बनाई और दुकान से सामान लाया। जब वह घर आया, राधा ने तारीफ की, "वाह, तुम तो मुझसे भी अच्छा सामान चुन लाए!" राहुल को यह सुनकर बहुत अच्छा लगा।
समय बीतता गया, और राहुल ने देखा कि उसकी माँ उसका साथी बन रही है, न कि उसका मालिक। वह अपनी माँ से सलाह लेने लगा, अपनी परेशानियाँ बताने लगा। राधा ने उसे कभी मजबूर नहीं किया, बल्कि प्यार और समझदारी से सही रास्ता दिखाया। एक दिन, राहुल ने खुद कहा, "माँ, तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो। तुमने मुझे सिखाया कि मैं गलतियाँ कर सकता हूँ, लेकिन उनसे सीखकर बेहतर बन सकता हूँ।"
और इस तरह, राधा और राहुल का रिश्ता पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत हो गया। जंगल के सारे लोग उनकी जोड़ी की तारीफ करने लगे, और राहुल धीरे-धीरे एक ज़िम्मेदार और खुशहाल इंसान बन गया।
कहानी की सीख:
दोस्त बनें, मालिक नहीं: अपने बच्चे को कंट्रोल करने की बजाय उसका दोस्त बनें। उसकी बातें सुनें, उसकी पसंद को महत्व दें।
प्यार और तारीफ: छोटी-छोटी अच्छी बातों की तारीफ करें। इससे बच्चे को प्रेरणा मिलती है।
माफी माँगें: अगर आप गलती करें, तो माफी माँगने में संकोच न करें। यह बच्चे को सम्मान देना सिखाता है।
ज़िम्मेदारी दें: छोटे-छोटे काम देकर बच्चे को ज़िम्मेदार बनाएँ।
खुलकर बात करें: बच्चे की परेशानियों को बिना जज किए सुनें और सलाह दें, न कि मजबूर करें।
यह कहानी सरल, रोचक और याद रखने योग्य है। इसे बच्चों और माता-पिता दोनों के साथ साझा किया जा सकता है, और यह रिश्तों को बेहतर बनाने का आसान तरीका सिखाती है।
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